क्यों सफल होना छोड़ दूं
मै मनुज तो हू प्रबल
ललकार से मै क्यों डरुं ।
मै हू खगों में गरुण
उड़ना है बादल चीर कर
आसमान के वक्ष पर
छोड़ अपनी छाप सुंदर ।
इस मोह रूपी अवरोध से
क्यों मैं भला ही न लड़ु
विफल होने की चेष्ठा से
क्यों युद्ध मै ये ना करुं ।
था मात ज्ञान तो कर्ण को
पर युद्ध उसने भी किया
सामने माधव को देखा
रथ को आगे खींच दिया ।
मै कर्ण की भाती उस युद्ध का
वीर बनाना चाहता हूं
अभिमन्यु की तरह मैं
व्यूह छलना चाहता हूं ।
कुछ भाग्य मेरा है अगर
तो मै बदलना जानता हूं
नियति के इस कठिन चक्र को
मै पलटना जानता हुं ।